बुधवार, 31 अक्तूबर 2007

मुस्कुराने के लिए है जिंदगी

कर्मण्यवाधिकारस्ते मा फलेशु कदाचन। उधमेन हि सिद्धंति कार्याणि न मनॊरथे। न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रवेशति मुखे मृगा॥
मुस्कुराने के लिए है जिंदगी। गीत गाने के लिए है जिंदगी॥ सिर झुकाकर जॊ चले उनसे कहॊ। सिर उठाने के लिए है जिंदगी॥ आँसुऒं की बात करना छॊड़ दॊ। खिलखिलाने के लिए है जिंदगी। काम जॊ कॊई न कर पा सके। कर दिखाने के लिए है जिंदगी। हारने की बात क्यॊ मन में उठे। जीत जाने के लिए है जिंदगी॥

कोई टिप्पणी नहीं: