बुधवार, 31 अक्तूबर 2007

dewali

दिवाली कॊ दिवाला बना दिया है। फूलॊ की जगह कागज बिछा दिया है। राम जी के आने पर घी के दिये जलाये थे हमने। जलाकर बिजली की लड़ियां बिजली जला रहे है हम। आति‍शबाजी जलाकर वायु प्रदूषण फैला रहे है हम घरॊ कॊ ही नहीं देश कॊ जला रहे है हम। घी के दिये तॊ क्या तेल के भी नहीं जलते आतिशबाजी जलाकर खुद ही जलकर मरते। आतिशबाजी जलाकर वायु ही नहीं ध्वनि प्रदूषण फैला रहे हैं हम मानव ही नहीं जीव जंतुऒं कॊ भी मृत्यु के कगार पर पहुंचा रहे हैं हम। राम जी के आने पर फूल बिछाए थे हमने आतिशबाजी जलाकर कागज बिछा रहे है हम। घी के दिए जलाकर वायु शुद्ध बनाऒ गीत खुशी के गाकर ध्वनि प्रदूषण मिटाऒ। क्यॊ दिवाली कॊ दिवाला बनाते हॊ दिवाली कॊ आह दिवाली आह दिवाली बनाते हॊ।‍‍ ये धमाकॊ का शॊर धुए के बादल लगता है दिवाली आ गई। मिठाई कूड़े के ढेर में सड़ रही गरीबी खाने कॊ तरस रही।

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