शुक्रवार, 2 नवंबर 2007

भविष्य सोच

भविष्य सोच से अभिप्राय यह है कि भविष्य के बारे में सोचना जैसे किसी व्यक्ति के घर जाते हुए मैं यह सोच सकता हूं कि वह व्यक्ति मिलेगा अथवा नहीं मिलेगा लेकिन उसके घर जाने पर पता चलेगा कि वह मकान बदलकर कहीं चला गया यह मैंने नहीं सोचा था।


मनुष्य जितना सोच सकता है कोई भी कार्य उससे ज्यादा अपने आप बन या बिगड़ जाता है इसे आप किस्मत, भगवान, (ईश्वर) की मरजी या तीसरी सोच जो भी चाहो कह सकते हैं यही भविष्य सोच है।

कोई टिप्पणी नहीं: