सोमवार, 5 नवंबर 2007

किस्मत के द्वार

जाने कब खुलगे किस्मतों के द्वारा, किस्मतों के द्वार खुलते-खुलते सदिया लग जाती हैं।
न जाने फिर भी पूरे खुल पाते हैं क्या किस्मतों के द्वार।

कब खुश हुआ है आदमी अपने जीवन से, या अपनी किस्मत से
चाह रही है सदा कुछ पाने की, अच्छी किस्मतों को पाने की।

दूसरे की समझ कर अच्छी किस्मत, कोश रहे है हम अपनी किस्मत को।
लेकिन उस दूसरे को भी, अच्छी किस्मत की चाह रही है।
वह भी कोश रहा है अपनी किस्मत को

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