बुधवार, 17 मार्च 2010

सहस्त्र नाम जप कैसे करें ?



ईश्वर को स्मरण या जप करने यूं तो कोई एकमात्र निर्धारित ढंग नहीं है ,फिर भी किसी भी कार्य को इस ढंग से किया जाए ,जिस से वह सहज रूप से संपन्न हो जाए l जपादि के लिए भी ऐसी ही चित्र वुत्ति निरोधक विधि हमारे ऋषि महर्षियों ने निर्धारित की है l इस विधि द्वारा जपादि करने से प्राणी मात्र को एकाग्रत प्राप्त होती है ,जिस से हमें साधना का अनन्त फल प्राप्त होता है ,जितनी अधिक एकाग्रत होगी ,उतना ही लाभ होगा l
श्री शिव सहस्त्रनाम पाठ करने के लिए सर्व प्रथम भगवान् शिव का आवाहन व् पूजा करें l पूजन में सर्व प्रथम आसन अर्पित करें ------------
श्री साम्ब  सदाशिवाय नमः आसनं समर्पयामि तत्पश्चात पैर धोने ले लिए कल समर्पित करें --पाद्यं समर्प यामि, अघ्य्र समर्पयामि ,आचमन अर्पित करें --आचमनीयं समर्प यामि ,स्नान हेतु जल समर्पित करें --स्नानार्थ जलं समर्प यामि ,तिलक हेतु द्रव्य अर्पित करें ----गंधं समर्प यामि ,धुप -दीप दिखाएं -धूपं -दीपं दर्श यामि , प्रसाद अर्पित करें --नैवेद्यं निवेदयामि ,आचमन हेतु जल समर्पित करें ----आचमनीयं समर्पयामि तत्पश्चात नमस्कार करें --नमस्कारोमी l  तत्पश्चात माला लेकर नाम जप अथवा पाठ करना चाहिए l जप या पाठ के लिए तुलसी या रुद्राक्ष की माला ही उत्तम मानी गयी है l माला दाहिने हाथ में धारण करनी चाहिए l श्री शिव सहस्त्रनाम युगों-युगों से अभिष्ट फल दायक है l
शिव सहस्त्रनाम -स्त्रोत्र



सूतो वाच ----
श्रूयताम्रुषय : श्रेष्टा काठ यामि यथा श्रुतम l
विष्णुना प्रार्थितो ये न संतुष्ट पर मेश्वरा l
तदहं कथ याम्यद्य पुण्यं नाम सहस्त्र्कम l l

श्री विष्णु रुवाच --
शिवो हरो मृड़ो रूद्र पुष्कर :पुष्पलोचन l
अर्थिगम्य सदाचार शर्व शं भु र्म हेश्वर l l
 चंद्रपीड शचन्द्रमौलीर्वीश्वं  विश्वा मरेश्श्वर l
वेदां तसार संदोह कपाली नीलालोहित l l
ध्यान धारो परिछेद्यो गौरीभर्ता गणेश्वर l
अष्टमूर्ती विश्वामूर्तीस्त्रिवर्ग स्वर्ग साधन l l
ज्ञान गम्यो दृढ़ प्रज्ञो देवदेव स्त्रीलोचन l
वामदेवो महादेव पटु पारी वृढो दृढ l l
विश्व रूपों विरूपाक्षे वागीश शुचि सत्तम l
सर्व प्रमाणसं वादी वृषाड को वृष वाहन l l
ईश पिनाकी खट वांगी चित्र वेष श्चिरन्तन l
तमो हारी महायोगी गोप्ता ब्रह्माच धूर्जटि l l
काल काल कृत्तिवासा सुभग प्रण वात्मक l
उत्र्ध्र पुरुषो जुष्यों दुर्व्रा सा पुर शासन l l
दिव्यायुध स्कन्द गुरु पर मेंशठीपरात्पर l  
अनादि मध्यानिधनो गिरीशो गिरि जाधव l  l
कुबेर बंधु श्री कंन्ठो लोक वर्नोत्तमो मृदु l
समा धिवेद्य को दण्डी नील कंठा परस्वाधी l  l
विशालाक्षे मृगव्याध सुरेश सूर्यतापन l
धर्म धामक्षेत्रं भगवानभं गनेत्र्भित l l
उग्र पशु पतिस्ताक्षर्य प्रिय भक्त परं तप ल
डाटा दयाकारो दक्ष कपर्दी काम शासन l l
शम शान निलय सूक्ष्म श्मशान स्थो महेश्वर l
लोक कर्त्ता मृग पतिर्म हाकर्त्ता महौषधि l l
उत्तरों गोपतिर्गोप्ता ज्ञागम्य  पुरातन l
नीति सुनीति शुद्धात्मा सोम : रत सुखी l l
सोमयो मृतप सौम्यो महाते जा महाद्युति l
तेजो मयो मृतमयो त्रमयस्च सुधापति l l
अजात शत्रु रालो क संभाव्यो हव्य वाहन l
लोक करो वेद्कर सूत्रकार सनातन l l
महर्षि कपिलाचार्यो विश्वदीप्ति स्रिलोचन l
पिनाकपाणिर्भूदेव स्वस्तिद स्वस्ति कृत्स्युधी l l
धात्रु धामा धामकर सर्वग सर्व गोचर l
ब्रह्म स्रुग्विश्वस्रू  क्सर्ग  कर्निकार प्रिय कवि l l
शाखों विशाखो गोशाख शिवो भिषगनुत्तम l
गड गाप्ल्वो दको भव्य पुष्कल स्थपति शिथिर l l
विजितात्मा विषायात्मा तवाह नसारथि l
सगणो गण कायशच सुकीर्ति श्छित्रसं शय l l
कामदेव कामपालो भस्मो द्वालित विग्रह l
भस्म प्रियो भस्मशायी उमापति कृतागम l l
समावर्तो  निव्रुत्तात्मा धर्म पुज सदाशिव l
अकल्मषशचतर्बाह दुर्धर्षो दुरासद l l
दुर्लभो दुर्गमो  दुर्ग सर्वा युध विशारद l
अध्यात्मयोग निलय सुतंतु स्तन्तु वर्धन l l
शुभां गोलोक सारंगो  जगदीशो जनार्दन l
भस्म शुद्दीकरो मेरूरो जसवी शुद्ध विग्रह l l
असाध्य साधु साध्य्श्च भ्रुत्य्मर्क टरू पध्रुक l
हिरण्य रेता पौराणो रिपूजीत हरो बल l l
महाह्रदो महागर्त्त सिद्ध वृन्दार वंदित l
व्याघ्रचरमाम्बरो व्याली महाभूतो महा निधि l l
अमृतांशो मृत वपु पांच जन्य प्रभंजन l
पंच विशांतितत्त्वस्थ पारिजात पारावर l l
सुलभ सुव्रत शूरो ब्रह्मवेद निधिर्निधि l
वर्णाश्र मगुरुर्वर्णी वायु वाहन l l
धनुर्धरोधनु र्वे दो गुण राशिर्गुणा कर l
सत्य सत्यपरो दीनो धर्मा गोधर्म साधन l l
अनन्त दृष्टिरा नन्दों दंडो दमयिता दम l
अभिवाद्यों महा मायो विश्वकर्मा विशारद l l
वीतरागो विनीतात्मा तपस्वी भृत भावन l
उन्मत्त्वे ष प्रच्छत्रो जितकामो जित प्रिय l l
कल्याण प्रकृति कल्प सर्व लोक प्रजापति l
तप्स्वीतार को धीमा न्प्रधान प्रभु रव्यय l l
लोक पालो न्तर्हीतात्मा कल्पादों कमलेक्षण l
वेदशास्त्रार्थतत्त्वज्ञो नियमो नियाताश्रय l l
चंद्र सूर्य शनि केतुर्व रांगो विदु मच्छवि l
भक्ति वश्य पर ब्रह्म मृग बाणार्पणोनध
अद्रिर द्यालय कांत परमात्मा जगद गुरु l
सर्व कर्मा लयस्तुष्टो मंगल्यो मड गलावृत l l
महात पादीर्घ तपा स्थ विष्ट स्थविरो धुप l
अह संवत्सरो व्याप्ति प्रमाणं परमं तप l l
संवत्सर करो मंत्र प्रत्यय सर्व दर्शन l
अज सर्वेश्वर सिद्धो महा रेता महाबल l l
योगीयोग्यो महाते जा: सिद्धि सर्वा दिर गृह l
वसुर्व सुमना सत्य सर्व पापहरो हर l l
सुकीर्ती शोभन श्रीमान वाड मनस गोचर l
अमृत शास्वत शान्तो बाणहस्त प्रतापवान l l
कमंडलू धरो धन्वी वेदांगो वेदविन्मुनी l
भ्राजिष्णु र्भोजनं भिकता लोक नाथो दुराधर l l
अतीन्द्रियो महामाय सर्व वासशच्तु षपथ l
कालयोगी महानादो महो त्साहो महाबल l l
महाबुद्धिर्म हावीर्यो भूतचारी पुरन्दर l
निशाचर प्रेत चारी महा शक्तिर्म हांद्युति l l
अनिर्दे श्यवपु श्री मान्सर्वाचार्य मनो गति l
बहु श्रुतो महामायो नियतात्माधू वो ध्रुव l l
ओजस्ते जाद्यु तिधरो नर्तक सर्व शासक l
नृत्य प्रियो नृत्यनित्य प्रकाशात्मा प्रकाशक l l
स्पष्टाक्षरो बुधो मंत्र समान सार संकल्प l
युगादि कृद्युगावर्तो गंभीरो वृष वाहन l l
इष्टो विशिष्ट शिष्टेष्ट शलभ शरभोधनु l
तीर्थ रूपस्तीर्थ नामा तीर्थ दृश्य स्तुतोर्थ द l l
अपां निधिर धिष्ठान विजयो जय्कालवित l
प्रतिष्टित प्रमाणज्ञो हिरण्य कवचो हरि l l
 विमोचन सुरगणों विद्यैशो बिंदु संश्रय l
बाल रूपों बालो न्मत्तो विकर्ता गहनों गृह l l
करणं कारणं कर्ता सर्व बन्ध विमोचन l
व्यवसायों व्यवस्थान स्थानदो जगदादिज l l
गुरदो ललितो भेदों भावात्मातनि संस्थित l
वीरे श्वरो वीर भद्रो वीरासन विधिर्विराट l l
वीरचूडामणिर्वेत्ता तीव्रनान्दो नदीधर l
आज्ञा धार स्त्रिशूलीच शिपिविष्ट शिवालय l l
बाल खिल्यो म्हाचाप स्तिग्मां शुर्ब धिर खग l
अभिराम सुशरण सुब्रह्मणय सुधापति l l
मघवान्कौ शिको गोमान्विराम सर्व साधन l
लालाटाक्षो विश्व्देह सार संचार चक्र भृत l  l
अमोघंद डो मध्य स्थो हिरण्यो ब्रह्म वर्चसी l
परमार्थ पारो माई शंबरो व्याघ्र लोचन l l
रुचिर्वीरं चि स्वर्र्बन्धुर्वा चस्पतिर हर्पति l
रविर्विचन स्कंद शास्ता वैवस्तोयम  l l
युक्तिरुत्रत कीर्तीश्च सानु राग परं जय l
कैलास साधिपति कान्त सविता रविलोचन l l
विद्धत्तमो वीत भयो विश्व भर्त्ता निवारित l
नित्यो नियत कल्याण पुण्य श्रवण कीर्तन l l   
दूर श्रवा विश्व सहोध्ये यो दुस्वप्न नाशन l
उत्तराणो दृष्क्रु तिहा विज्ञो यो दू: सहो भव l l
अनादिभूर्भू वो लक्ष्मी किरीटीत्रिदशाधिप l
विश्वगोप्ता विश्वकर्ता सुवीरो रुचिरांगद l l
जननी जनजन्मादी प्रीतिमात्रीतिमान्धव l
वसिष्ट कश्यपो भानु र्भीमो भीम पराक्रम l l
प्रणव : सत्प्था चारो महा कोशो महाधन l
जन्माधिपो महादेव सकला गमपारग l l
तत्त्वं त्त्व्विदेकात्मा विभु र्विश्व भूषन l
ऋषीर्ब्राह्मण ऐश्वर्य जन्म मृत्यु जरागित l l
पंचयज्ञससु त्पत्तिविर्श्वेशो विमलोदय l
आत्मयो नीर नाद्यान्तो वत्सलो भक्त्लोक धृक l l
गायत्री वल्लभ प्रांशु र्विश्वास प्रभाकर l
शीशीर्गिरि रत सम्राट सुषेण सुर शत्रु हा l l
अमोघो रिष्टने मिशच कुमुदों विगतज्वर l
स्वयं ज्योति स्तनु र्ज्योतिरात्मज्योतिर चंचल l l
पिंगल कपिलशमश्रुर्भालने त्रस्त्रयीतन l
ज्ञान स्कन्दो महानीतिर्विश्वो त्पत्ति रुपप्लाव l l
भगो विवास्तानादित्यो योग पारो दिवस्पति l
कल्याणगुण नामाच पापहा पुण्य दर्शन l l
उदार कीर्ति रुद्यो गी सद्यो गीसद्सन्मय l
नक्षत्र मालीनाकेश: स्वाधिटान पदाश्रय l l
पवित्र पापहारीच मणिपूरो नभो गति l
ह्र्त्पूडरी कमासीन शक्र शांतो वृषा कपि l l
उष्णो गृह पति कृष्ण समर्थ नर्थ नाशन l
अधर्म शत्रु रक्षेय पुरुहूत पुरुश्रुत l l
ब्रह्मगर्भो बृहद गर्भो धर्म धेनुर्ध नागम l
जगद्दीतैषी सुगत कुमार कुशलागम l l
हिरण्यवर्णों ज्योतिष्मात्रानाभु तर तो ध्वनि l
अरागो नयनाध्यक्षो विश्वामित्रो धनेस्वर l l
ब्रह्म्ज्योतिर्व सुधामा माहाज्योतिर नुत्तम l
माता महो मात रिश्वा नभ स्वात्राग हार धृक l l
पुलस्त्य पुलहो गस्त्यो जातू कनर्य पराशर l
निरावरण निर्वारो वैरं च्यो विष्टर श्रवा l l
अत्म्भूर निरुद्दो त्रिर्ज्ञान मूर्तिर्म हायशा l
लोकावीरा ग्राणीर्वीरशचंड सत्य पराक्रम l l
व्यालाकल्पो महाकल्पं कल्पवृक्ष कलाधर l
अलंक रिष्णु रचलो रोचिष्णु र्विक्रमोत्रत l l
आयु शब्द पतिर्वेणीप्लवन शिखी सारथि l
असं सृष्टा तिथि शक्र प्रमाथी पाद पासन l l
वासु श्रवा हव्यवाह प्रतप्ता विश्व भोजन l
जप्यो ज़रा दिश मनो लो हितात्मा तनून पात l l
ब्रुहदश्वो नभो योनि सुप्रतीक स्तामिस्त्र्हा l
निदाघस्तपनो मेघ स्वक्ष शिशिरात्मक l l
सुस्वनिल सुनिष्प्त्र सुरभि शिशिरात्मक l
वसन्तो माधवो ग्रीष्मो नभस्यो बीजवाहन l l          
अं गिरा गुरुरात्रे यो विमलो विश्वपावन l
पावन : सुमतिर्विद्दा स्त्री विद्यो नर वाहन l l
मनो बुद्दिर हंकार क्षेत्रज्ञ क्षेत्र पालक l
जमद्ग्निर्ब लनिधिर्विगालो विश्व्गालाव l l
अघोरो नुत्तरो यज्ञ श्रे यो निश्रेय सांपथ l
शैलो गगन कुन्दाभो दान वारि ररीं दम  l  l
रजनीजन कशचारु विशल्यो लोक कल्पधृक l
चतुर्वेद दश्च चतुर्भा वश्चतुर रश चतुर प्रिय l l
आम्नायोथ समाम्नाय स्तीर्थ देव शिवालय l
बहु रूपों महा रूप सर्व रूपश्चराचर l l
न्यायनिर्मायको न्यायी न्याय गम्यो निरंतर l
सहस्त्र मूर्धा देवेन्द्र सर्व शास्त्र प्रभंजन l l
मुण्डो विरूपो विक्रान्तो दण्डीदान्तो गुणोंत्तम l
पिंगलाक्षो जनाध्यक्षो नील ग्रीवो निरामय l l
सहस्त्रबाहु सर्वेश शरण्य सर्व लोक धृक l
पद मासन परम ज्योति पारंपार परं फलम l l
पदमगर्भो महागर्भो विश्वगर्भो विचक्षण l
चराचरज्ञो वर दो वरे शस्तु महाबल l l
देवासु रागुरिर्दे वो देवासुर महाश्रय l
देवादि देवो देवाग्निर्दे वाग्नि सुखद प्रभु l l
देवासुरे श्वरो दिव्यो देवासुर महेश्वर l
देवदेव् मयो चिन्त्यो देवदेवात्मसम्भव l l
सद्यो निरसुर व्याघ्रो देव सिंहो दिवाकर l
विबुधाग्रवर श्रेष्ठ सर्व देवोत्तामोत्तम l l
शिव ज्ञान रत श्री मव्च्छिखी श्री पर्वत प्रिय l
वज्र हस्त सिद्दिखडगनर सिंहनिपातन l l
लिंगाध्यक्ष सुराध्यक्षो योगाध्यक्षो युगावह l
स्वधर्म स्वर्गत स्वर स्वर मयस्वन l l
बाणाध्यक्षो बीजकर्ता धर्म कृद्दर्म संभव l
दंभो लोभार्थ विच्छमक्ष सर्व भूत महेश्वर l l
श्मशान निलयस्त्र्यक्ष सेतुर प्रति माकृति l
लोकोत्तर स्फुटालो स्त्रयां बको नागभूषण l l               
अंधकारिर्म खद्दे षी विष्णु कन्धर पातन l
हीनदोषो क्षयगुणों दक्षारि पूषदं त भित l l
धूर्जटि खण्डपरशु सकलो निष्कली नघ  l
अकाल सकलाधार पांडुराभो मृड़ो नट l l
पूर्ण पूरयिता पुण्य सुकुमार सुलोचन l
सामगेय प्रियो क्रूर पुण्य कीर्तिर नामय l l
मनो जवास्तीर्थ करो जटिल जीवितेश्वर l
जीवितन्तकारो नित्यो वसुरेता वसुप्रद l l
सदगति स्कृति सिद्दि सज्जति काल कण्टक l
कलाधारो महाकालो भूत सत्य परायण l l
लोकलावन्य कर्ता चलो कोत्तर सुखालय l
चन्द्रसं जीवन शास्ता लोक गूढो महाधिप l l
लोकबन्धु र्लोक नाथ कृतज्ञ कीर्तीभूषण   l
अनपायो क्षर कान्त सर्व शास्त्र भ्रुताम वर l l
तेजो मयोद्यु तिधरो लोक नाम ग्रणीरणु l
शचिस्मित प्रसत्रात्मादुर्जो यो दुरतिक्रम l l
ज्योतिर्म योज गन्नाथो निराकारो जलेश्वर l
तुम्बवीणो महाकोपो विशोक शोक नाशन l l     
त्रिलोक कप्स्त्रिलोकेश सर्वशुद्दिर धोक्षज l
अव्यक्तक्षणों देवो व्यक्तो विशांपति l l
वर शीलो वर गुण सारो मान्धानो मय l
ब्रह्म विष्णु प्रजापालो हंसो हं सगातिर्वय l l
वेधा विधाता चं स्त्रष्टा हर्त्ता चतुर्मुख l
कैलास शिखरा वासी सर्वा वासी सदा गति l l
हिरण्य गर्भो दुहिणो भूत्पालो थ भूपति l
सद्योगी योग विद्योगी वर दो ब्राह्मण प्रिय l l
देवप्रियो देवनाथो देवज्ञो देव चिन्तक l
विषमाक्षो विशालाक्षो वृषदो वृश्ह वर्धन l l
असंख्यों यो प्रमे यात्मार्वीय  वान्वीय कोविद l
वेद्यशचै व् वियोगात्मा परावर पामु नीश्वर l l
अनुत्तमो दुराधर्षो मधुर प्रिय दर्शन l
सुरेश शरणं सर्व शब्द ब्रह्म सतां गति l l
 कालपक्ष काल्कारीकं कणीकृत वासु कि l
महेष्वासो मही भर्ता निष्कलं को विश्रुड खल l l
द्युमणिस्तर णिर्धन्य सिद्दिद सिद्धि साधन l
विश्वत संवृत स्तुत्यो व्यूढो रस्को महा भुज l l
सर्व योनिर्निरांत को नर नारायाण प्रिय l
निर्लेपो निष्प्रपंचात्मा निर्व्य गोव्यड गनाशन l l
स्तव्य स्तवप्रिय स्तोता व्यास्मूर्ति निरं कुश l
नीरवद्यमयो पायो विद्याराशीर सप्रिय l l
प्रशान्तबुद्दिर क्षुणसं ग्रही नित्य सुन्दर l
वैयाध्रुर्यो दात्रीश शाकल्य शर्वरी पति l l
परमार्थ गुरुर्द्रष्टि शरीराश्रित वत्सल l
सोमो रसज्ञो रसद सर्व सत्तावलंबन l l
एवं नान्मास हस्त्रेणतुष्टाव वृषभध्वजम l
प्रार्थ यामास शंभूच पूज यामास पंकजै l l
परीक्षार्थ हरे स्तवीश कमलेषु महेश्वर l
गोपयामास कमलं तदेकं भुवनेश्वर l l
हृदि विचारितं तेन कुतो वै कमलं गतम l
यातु यातु सूखे नै व् नेत्रं किं कमलं न हि l l
ज्ञात्वातु नेत्र मुद धृत्य सर्व सत्त्वावलं बनम l
पूजयामास भावे न स्तवे णा ने न सर्वथा l l
निर्म मो निरहं कारो निर्मोहो निरुप्रदव l
दर्पहा दर्पदो दृप्त :सर्वर्तु परिवर्तक l l
सहस्त्र जित्स हस्त्राक्षि :स्निन्धप्रकृतिदक्षिण l
भूत भव्य भवननाथ : प्रभवो भूति नाशन l l
अर्थो नर्थो महाकोश पर कायै कपंडित l
निष्कंटक कृतानान्दो निर्व्या जो व्याज मर्दन l l
सत्त्ववान सात्त्विक सत्य कीर्ति स्नेह कृतागम l
अकम्पितो गुण ग्राही नै कात्मानै ककर्म कृत l l
सुप्रीत सुमुख सूक्ष्म सुकरो दक्षिणानिल l
नन्दिस्कंधधरो धुर्य प्रकट प्रीति वर्द्दन l l
अपराजित सर्व सत्त्वो गो विन्द सत्त्ववाहन l
अधृत स्वधृत सिद्ध पूतमूर्तिर्य शोधन l l
वाराश्रुड गध्रु क्छ्रूड गी बलवान कनायक l
श्रुति प्रकाश श्रुतिमाने कबं धुरने ककृत l l
श्री वत्सल शिवारं भ शांत भद्र समीयश l
भूषयो भूषणो भूतिर्भूत क्रुद भूत भावन l l
अकम्पो भक्ति कायस्तू कालहां नीललोहित l
सत्यव्रत महात्यागी नित्य्शां तिपारायण l l
परार्थ वृत्तिर्व रदों विवि क्षुस्तु विशारद l
शुभद शुभकर्ता चशु भनामाशु भ स्वयम l l
अनर्थितो गुण साक्षी ह्मकर्ता कनक प्रभ l
स्वभाव भद्रो मध्यस्थ शीघ्र शीघ्रनाशन l l
शिखण्डी कवची शूली जटी मुण्डीच कुण्डली l
अमृत्यु सर्व द्र्क्सिंहस्ते जोराशिर्म हामणि l l
असंख्यों यो प्रमे यात्मार्वीय  वान्वीय कोविद l
वेद्यशचै व् वियोगात्मा परावर पामु नीश्वर l l
अनुत्तमो दुराधर्षो मधुर प्रिय दर्शन l
सुरेश शरणं सर्व शब्द ब्रह्म सतां गति l l
 कालपक्ष काल्कारीकं कणीकृत वासु कि l
महेष्वासो मही भर्ता निष्कलं को विश्रुड खल l l
द्युमणिस्तर णिर्धन्य सिद्दिद सिद्धि साधन l
विश्वत संवृत स्तुत्यो व्यूढो रस्को महा भुज l l
सर्व योनिर्निरांत को नर नारायाण प्रिय l
निर्लेपो निष्प्रपंचात्मा निर्व्य गोव्यड गनाशन l l
स्तव्य स्तवप्रिय स्तोता व्यास्मूर्ति निरं कुश l
नीरवद्यमयो पायो विद्याराशीर सप्रिय l l
प्रशान्तबुद्दिर क्षुणसं ग्रही नित्य सुन्दर l
वैयाध्रुर्यो दात्रीश शाकल्य शर्वरी पति l l
परमार्थ गुरुर्द्रष्टि शरीराश्रित वत्सल l
सोमो रसज्ञो रसद सर्व सत्तावलंबन l l
एवं नान्मास हस्त्रेणतुष्टाव वृषभध्वजम l
प्रार्थ यामास शंभूच पूज यामास पंकजै l l
परीक्षार्थ हरे स्तवीश कमलेषु महेश्वर l
गोपयामास कमलं तदेकं भुवनेश्वर l l
हृदि विचारितं तेन कुतो वै कमलं गतम l
यातु यातु सूखे नै व् नेत्रं किं कमलं न हि l l
ज्ञात्वातु नेत्र मुद धृत्य सर्व सत्त्वावलं बनम l
पूजयामास भावे न स्तवे णा ने न सर्वथा l l
मामेतिव्याहार ट्रेव प्रादुरा सीज्जगद गुरु l
ततस्तु तम्ठो दृष्ट वा तथा भूतं हरो हरिम l l
तत्स्मादवतता राशु  मण्डलात्पार्थिवस्य स l
यथो क्त रूपिणं शंभु तेजोराशिं समुत्थितम l l
नमस्क्रुत्य पुर स्थित्वास्तु तींकृत्वा विशेषत l
पूजयामास देवेश पार्वत्या सहितं शिवम् l l
प्रसन्नवदनो भूत्वाशं भोशच सम्मुखे स्थित l
इत्यं भूतं हरो दृष्ट वा कोटि भास्कर भूषित l l
प्राणिनामीश्वर शंभु देवदेवो जनार्दनम l
तदा प्राह महादेव प्रहसत्रिव शंकर l
संमेक्ष माणंतं विष्णु कृतांजलि पुटं स्थितम l l
 शंकर उवाच ---
ज्ञातं  ममभेदं सकले देव कार्य जनार्दन l
सुदर्शनाख्यं चक्रं चद दामि तव शोभनम l l
यद् रूपभवता दृष्टं सर्वलोक सुखा वहम l
हितार्य तव देवेशं कृतं भाव्यसु वृतम l l
रणाजिरे पिसं स्म्रूत्यदेवानां दुःख नाशनम l
इदं चक्र मिवदं रूपमिदं नाम सहस्त्र्कम l l
येश्रुणवन्ति सदा भक्त्या सिद्धि स्यादनपायिनी l
एवमुक्त्वा ददौ चक्रं सूर्यायु तसं प्रभम l l
विष्णु रपिच सं स्त्रात्वाज ग्राहो दड मुखस्तदा l
नमस्कृत्य तदा देव पुनर्व चनमब्र वीत l
श्रुणु देवमया ध्येयं पठनीयंच में प्रभो l
दुखांनां नाशनार्थ हि वदत्वं लोक शंकर l l
इति पृष्ट स्तदा तेन संतुष्टस्तु शिवो ब्रवीत l
रूपं ध्येयं मदीयं वै सर्वा नर्थ प्रशांतये l l
अन्येकदुखनाशार्थ पाठंच नाम सहस्त्र्कम l
धार्य चक्रं सदा मेंद्य सर्वा नर्थ प्रशां तये l l
अन्येच ये पतिष्य'ति पाठयिषयंति नित्यश l   
तेषां दुःख न स्वप्ने पि जायते नात्र संशय l l        
राज्ञां चसं कटे प्राप्रे शतावर्त चरे द्यता l
सांगच विधि युक्तो हि कल्याणं लभते नर l l
रोग नाशकरं ह्वेत द्धिद्यादायक मुत्त्म्म l
समुद्धि श्य्फलं श्रेशटम  पठंति फल्मुत्तम्म l l
लभन्ते नात्रसं देह सत्य्मेतद्दंचमम l
प्रातः समु थ्याय सदा पूजां कृत्वा मदीयाकम l l
पठतो मत्समकक्षं वै नित्यं सिद्धिर्न दूरत l
ऐहिकीं सिद्धि मासाद्य पर लोक समुदभावंम l l
प्राप्नोति पाठको नित्य्मष्ट मासान सुरेश्वर l
सायुज्य मुक्ति मायातिनात्रकार्या विचारणा l l   
 एवमुक्त्वातदाविष्णुं शंकर प्रीत मानस l
उपस्प्रु श्य्कराभ्यांच उवाच शंकर पुन l l
वरदो स्मिसुर श्रेष्ट वरान्वर यथेप्सितान l
भक्त्या वशीकृतो नूनंस्तवे नाने न वै पुन l l
इत्युक्तो देवदेवेन देवदेवं प्राणम्यतंम l
यथे दानीं कृपा देव क्रियतेचाप्यत परम l l
कार्या चै वविशेषेण कृपालु त्वात्व्या प्रभो l
त्वयिभक्तिं महादेव प्रयच्छ वर मुत्तम l l
णा नयामिच्छामि भगवन्पूतर्णों हंते प्रसादत l
तच्छ्युत्वा वचनं तस्य दया वान्सु तरांभव l l
प्राह्त्वेनं महादेव परमात्मान मच्युतम l
मयि भक्तिश्चवंद्यासत्वं पूज्यशचै वसुरै रपि  l l
विश्वं भर सत्व्दीय'वै नाम पापहरं परम l
भविष्यति ण संदेहो मत्प्रसादात्सुरोत्तम l l
इत्यु क्त्वान्तर्दधे रुद्रो भगवात्रीललोहित l
जनार्दनोपि भगवान्व चनाच्छं करस्य्च l l
प्राप्य चक्रं शुभं ध्यानं स्त्रोतमेत त्रिरन्तरम l
प्रपाठा ध्यापयामासभक्ते भ्यस्तदुपादिशत l l
अन्येपि येप ठिष्यन्ति ते विन्दन्तु तथा फलम l
इति पृष्टं समाख्यातं श्रुणवतां पापहारकम l l



          
रुद्राष्टकम्
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपं।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं ॥1
निराकारमोंकारमूलं तुरीयं। गिरा ग्यानगोतीतमीशं गिरीशं।
करालं महाकालकालं कृपालं। गुणागार संसारपारं नतोऽहं ॥2
तुषाराद्रि संकाश गौरं गम्भीरं। मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरं।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा। लसदभालबालेन्दु कण्ठे भुजंगा ॥3
चलत्कुण्डलं भ्रू सुनेत्रं विशालं। प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं। प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥4
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं। अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशम्।
त्रयशूल निर्मूलनं शूलपाणिं। भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं ॥ऽ॥
कलातीत कल्याण कल्पांतकारी। सदासज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानन्द संदोह मोहापहारी। प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6
यावद् उमानाथ पादारविंदं। भजंतीह लोके परे वा नराणां।
तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं। प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7
जानामि योगं जपं नैव पूजां। नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यं।
जराजन्म दुखौघ तातप्यमानं। प्रभो पाहि आपन्न्मामीश शंभो।
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विपेण हरतुष्टये ।
ये पठन्ति नरा भक्तया तेषां शम्भु प्रसीदति॥

आरती श्री शिव जी
 जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा.
ब्रह्मा, विष्णु , सदाशिव, अर्द्धांगी धारा. ॐ जय.
एकानन, चतुरानन, पंचानन राजे.
हंसानन, गरुड़ासन, वृषवाहन साजे. ॐ जय...
दो भुज चार चतुर्भुज, दस भुज अति सोहे.
तीनों रुप निरखता, त्रिभुवन जन मोहे. ॐ जय...
अक्षमाला वनमाला, रुण्डमाला धारी.
चन्दन मृग मद सोहे , भोले शुभकारी. ॐ जय...
श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघम्बर अंगे.
सनकादिक,  ब्रह्मादिक,  भूतादिक संगे.  ॐ जय..
कर में मध्य कमंडल चक्र त्रिशूल धरता.
जग करता दुख हरता, जग पालन करता.  ॐ जय...
ब्रह्मा, विष्णु सदाशिव, जानत अविवेका
प्रणवाक्षर के मध्य, ये तीनों एका.  ॐ जय...         
त्रिगुण स्वामी जी की आरती जो कोई नर गावे.
कहत शिवानन्द स्वामी, मन वांछित फ़ल पावै. ॐ जय.