इंसान के कर्म ही उसे खुशकिस्मत या बदकिस्मत बना देते हैं। यही कारण है कि
शास्त्र सुखी जीवन के लिये अच्छे कर्मों की ही सीख देते हैं।
ऐसे ही सद्कर्मो से सौभाग्यशाली बनने के लिये धार्मिक उपायों में पितृ पूजा और स्मरण का महत्व शास्त्रों में बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक पितृदोष इंसान के जीवन में गहरी परेशानियों, असफलता और संकट का कारण बन सकता है। कुण्डली में राहु-केतु ग्रहों के कारण बने बुरे योग भी पितृदोष पैदा करते हैं।
इस दोष निवारण और पितरों की प्रसन्नता के लिये शास्त्रों में अमावस्या तिथि बहुत ही शुभ मानी जाती है। इस दिन पितरों की पूजा के लिये विशेष मंत्र जप का विधान शास्त्रों में बताया गया है। जिसके स्मरण से व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में आ रही परेशानियों का अंत होता है।
जानते हैं संकटनाशक पितृस्त्रोत और पितृ पूजा की सरल विधि -
- तीर्थ या पवित्र जलाशय में स्नान कर वहां किसी विद्वान ब्राह्मण से पितृ तर्पण व श्राद्ध कर्म कराएं। घर में पितरों की तस्वीर की गंध, अक्षत, काले तिल चढ़ाकर या पीपल के वृक्ष में जल अर्पित कर नीचे लिखें पितृस्त्रोत का पाठ करें या करवाएं।
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
ऐसे ही सद्कर्मो से सौभाग्यशाली बनने के लिये धार्मिक उपायों में पितृ पूजा और स्मरण का महत्व शास्त्रों में बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक पितृदोष इंसान के जीवन में गहरी परेशानियों, असफलता और संकट का कारण बन सकता है। कुण्डली में राहु-केतु ग्रहों के कारण बने बुरे योग भी पितृदोष पैदा करते हैं।
इस दोष निवारण और पितरों की प्रसन्नता के लिये शास्त्रों में अमावस्या तिथि बहुत ही शुभ मानी जाती है। इस दिन पितरों की पूजा के लिये विशेष मंत्र जप का विधान शास्त्रों में बताया गया है। जिसके स्मरण से व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन में आ रही परेशानियों का अंत होता है।
जानते हैं संकटनाशक पितृस्त्रोत और पितृ पूजा की सरल विधि -
- तीर्थ या पवित्र जलाशय में स्नान कर वहां किसी विद्वान ब्राह्मण से पितृ तर्पण व श्राद्ध कर्म कराएं। घर में पितरों की तस्वीर की गंध, अक्षत, काले तिल चढ़ाकर या पीपल के वृक्ष में जल अर्पित कर नीचे लिखें पितृस्त्रोत का पाठ करें या करवाएं।
अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान् नमस्यामि कामदान्।।
मन्वादीनां च नेतार: सूर्याचन्दमसोस्तथा।
तान् नमस्यामहं सर्वान् पितृनप्युदधावपि।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिवोव्योश्च तथा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।
अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येहं कृताञ्जलि:।।
प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च।
प्रजापते: कश्पाय सोमाय वरुणाय च।
योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृताञ्जलि:।।
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।
स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।
अग्रिरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।
अग्रीषोममयं विश्वं यत एतदशेषत:।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्रिमूर्तय:।
जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिण:।।
तेभ्योखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतामनस:।
- पाठ के बाद पितरों से सुख-शांति-सफलता की कामना कर यथाशक्ति ब्राह्मणों, गरीबों को दान कर भोजन कराएं।
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