ये मंत्र केवल धूप, दीप लगाकर बोलने मात्र से ही मनचाही मुरादें पूरी कर देते है। यह मंत्र
स्तुति विष्णु पञ्जर स्तोत्र के नाम से भी प्रसिद्ध है।
प्रवक्ष्याम्यधुना ह्येतद्वैष्णवं पञ्जरं
शुभम्। नमो नमस्ते गोविन्द चक्रं गृह्य सुदर्शनम्।। प्राच्यां रक्षस्व
मां विष्णो त्वामहं शरणं गत:। गदां कौमोदकीं गृह्य पद्मनाभ
नमोस्तु ते।। याम्यां रक्षस्व मां विष्णो त्वामहं शरणं गत:।
हलमादाय सौनन्दं नमस्ते पुरुषोत्तम।। प्रतीच्यां रक्ष
मां विष्णो त्वामहं शरणं गत:। मुसलं शातनं
गृह्य पुण्डरीकाक्ष रक्ष माम्।। उत्तरस्यां जगन्ननाथ भवन्तं शरणं गत:। खड्गमादाय
चर्माथ अस्त्रशस्त्रादिकं हरे।। नमस्ते रक्ष रक्षोघ्र ऐशान्यां शरणं गत:। पाञ्चजन्यं
महाशङ्खमनुघोष्यं च पङ्कजम्।। प्रगृह्य रक्ष मां विष्णो आग्रेय्यां यज्ञशूकर।
चन्द्रसूर्य समागृह्य खड्गं चान्द्रमसं तथा।। नैर्ऋत्यां मां च रक्षस्व दिव्यमूर्ते
नृकेसरिन्। वैजयन्ती सम्प्रगृह्य श्रीवत्सं कण्ठभूषणम्।। वायव्यां रक्ष मां
देव हयग्रीव नमोस्तुते। वैनतेयं समरुह्य त्वन्तरिक्षे जनार्दन।। मां रक्षस्वाजित
सद नमस्तेस्त्वपराजित। विशालाक्षं समारुह्य रक्ष मां तवं रसातले।। अकूपार
नमस्तुभ्यं महामीन नमोस्तु ते। करशीर्षाद्यङ्गलीषु सत्य त्वं बाहुपञ्जरम्।। कृत्वा
रक्षस्व मां विष्णो नमस्ते पुरुषोत्तम। एतदुक्तं शङ्काराय वैष्णवं पञ्जरं महत्।।
पुरा रक्षार्थमीशान्यां: कात्यायन्या वृषध्वज। नाशयामास सा
येन चामरं महिषासुरम्।। दानव रक्तबीजं च अन्यांश्च
सुरकण्टकान्। एतज्जपन्नरो भक्तया शत्रून् विजयते सदा।।
शाम को स्नान कर विष्णु रूप शालिग्राम शिला को पहले पंचामृत
यानी दूध, दही, शहद, घी और शक्कर के
मिश्रण से स्नान कराकर विशेष रूप से केसर मिले चन्दन जल से स्नान कराएं। स्नान के बाद भगवान शालिग्राम की गंध, सफेद तिल, फूल, वस्त्र, तुलसी के पत्ते, दूर्वा, इत्र आदि लगाकर पूजा करें। अगली तस्वीर के साथ
बताया भगवान विष्णु का मंत्र
बोलें। बाद भगवान शालिग्राम
की आरती धूप और घी के दीप जलाकर करें। अंत में शालिग्राम को स्नान कराएं चरणामृत का सेवन जरूर
करें। इससे न केवल तीर्थजल के समान
पुण्य मिलता है बल्कि सुख-समृद्धि भी आती है। अगली तस्वीर पर
क्लिक कर जानिए शालग्राम स्मरण का विशेष मंत्र-प्रणवेन च लक्ष्यो वै गायत्री च गदाधर:। शालग्रामनिवासी च
शालग्रामस्तथैव च।। जलशायी योगशायी
शेषशायी कुशेशय:। महीभर्ता च कार्यं च
कारणं पृथिवीधर:।।
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