गुरुवार, 19 दिसंबर 2019

समाज में सिर्फ युवा नहीं बुजुर्गों का होना भी जरूरी है


अक्टूबर का महीना वैसे तो त्यौहारों बदलते मौसम और सालाना सफाई के लिए जाना जाता है लेकिन 1 अक्टूबर को यह  राष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस मनाए जाने से भी शुरू होता है।
बढ़ती उम्र से यह माना कि अब कुछ करने को क्षमता नहीं है नहीं रही यह बात इस वर्ष भौतकियों ने गलत सिद्ध कर दी है क्योंकि उनमें से एक 80 वर्ष से कुछ कम और दो 80 के दशक का आधा भी पार कर चुके हैं इसी के साथ हमारे देश के पूर्व वित्त मंत्री और कर्म एवं सक्रिय नेता ने अपनी ही पार्टी की आलोचना कि तो वर्तमान तथा कथित युवा मंत्री की टिप्पणी थी मुझे 80 वर्ष की उम्र में नौकरी के लिए आवेदन करना है इस पर पूर्व मंत्री को पलट वार था कि हम जो होते है तो वहां जहां आप अभी हैं वहां नहीं होते क्या यह युवाओं के अधिकार और बड़ी उम्र वालों के दम का प्रतीक नहीं है
किसी भी टिप्पणी से सहमत या असहमत अपना अलग बात है लेकिन उम्र को लेकर अभद्रता की सीमा पार कर देना कर कतई उचित नहीं है।
आज विश्वभर में विश्व हर विशेषकर उम्रदराज लोगों में स्वस्थ रहने की एक होड़ सी लगी है और व्यक्ति की अंतिम यात्रा तक शारीरिक और मानसिक रूप से चलते फिरते रहना तथा बुद्धि का अधिक से अधिक उपयोग करते रहना चाहता है क्या यह इस बात को नहीं दर्शाता कि अब उम्र केवल मात्र एक संख्या से अधिक नहीं और उस व्यक्ति की क्षमता से कोई लेना देना नहीं है।
स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने और उपलब्ध चिकित्सीय सुविधाओं के कारण आगे आने वर्षों में 60 वर्ष या उससे ऊपर आयु के व्यक्ति 15-24 वर्ष के युवाओ की आबादी से अधिक जावेगे क्या यह इस बात का संकेत नहीं है कि सरकार नीतियों में इस दूरगामी सोच के साथ बनाए कि जिसे हम बुढ़ापा कहते हैं और हमारे शास्त्रों में वानप्रस्थ और सन्यास आश्रम में प्रवेश की आयु कहा गया है उसका देश और समाज समाज के हित में किस प्रकार सदुपयोग किया जाएगा।
वर्तमान प्रधानमंत्री कि यह सोच की 75 वर्ष से अधिक का कोई व्यक्ति उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए उपयुक्त नहीं है क्या यह वरिष्ठ और अनुभव वाले व्यक्ति के सम्मान पर चोट नहीं है जो जीवन भर कर्मठ बनकर कुछ ना कुछ देश और समाज को देते ही रहे हैं और अब भी किसी से कम नहीं है अब युग ऐसा है हमें उनकी विविध अनुभव तथा क्षमताओं को पूरा लाभ लिया जाए
वृद्धावस्था अभिशाप नहीं जब इन दिनों मुझे से मेरी उम्र पूछी जाती है और मैं 85 वर्ष पास करने की बात कर रहा तो पूछने वाला आश्चर्य निमित्‍त नजरों से देखता है और सराहना या उपेक्षा करने के अंदाज में कहता है कि आप इतनी आयू के लगते नहीं है और अब आप को काम छोड़कर आराम करना चाहहिए। मैं केवल उनकी ओर विस्‍मय से मुस्‍कराता हूं और केवल इतना कहता हूं कि मेरे लिखने पढ़ने के ि‍लए तथा अधिक सामाजिक होने के लिए लोगों से मिलना जुलना आवश्‍यक है और मुझे इस में आनन्‍द आता है अभी मैं अपनी दो पहिया तथा चार पहिया वाहन को चलाता हूं अब भी मेरे जीवन की धारा में कोई प्रतिरोध नहीं है और अब भी मैं अपने वरिष्‍ट नागरिक समिति के काम करता हूं। इस समिति का मैं अध्‍यक्ष हूं और मेरे साथ मेरे दो अन्‍य साथी भी है जो 85 वर्ष पार करने के बाद काम करते है।
इसे भारतीय समाज की विडम्‍बना नहीं तो और क्‍या कहेंगे कि हमारे देश में 65 प्रतिशत लोगो के पास वृद्धावस्था का सुख भोगने का या कम से कम सुखपूर्वक समय गुजारने का कोई साधन ही नहीं है |  वे जीवनभर का संघर्ष जद्दोजहद परिवार के पालन, बच्चो के कैरियर से लेकर घर बनाने तक में लगे रहते है और इस मोड़ पर पहुच जाते जब उनके लिये अपने स्वास्थ्य की देखभाल और दो समय के भोजन के लिए भी पर्याप्त साधन नहीं बचे |
       केवल शेष 35 प्रतिशत ही ऐसे होते है जिनके पास इस उम्र में भी आमदनी के समुचित साधन है |  वे अपने शौक पूरे कर सकते है, जिसके बारे में सोचने का मौका उन्हे जीवन की आपाधापी  में मिला ही नहीं और जिनके पास अपना घर पूंजी, बचत के साथ-साथ ऐसा परिवार भी है जिसमे बच्चो के कहे पर हाथ रख कार आत्मीयता का अनुभव कर सकते है |
       जब कोई ऐसा दृश्य सामने आता है जिसमे गली मोहल्लो, सड़क चौराहे धार्मिक स्थान या किसी सार्वजनिक या पारिवारिक के बाहर कोई बुजुर्ग भीख मागता या मजदूरी की आस भी हमारे ओर उठता है तो उस प्रताडित नहीं करने, या बुरा भला कहने या चिल्लाते हुए कुछ सिक्के उसकी ओर उछाल देने को ही अपना पौरूष मान लिया जाता है |  कतई यह ध्यान नहीं आता है कि उनकी इस अवस्था के लिए समाज और सरकार भी उतनी जिम्मेदार है, जितने कि उसके परिवार वाले |
बुजुर्ग के साथ पारिवारिक और सामाजिक दुर्व्यवहार का सबसे अधिक शिकार होती है जो विध वत्व के साथ बरसो बरस तक जीवित रहते है |
दो तिहाई उम्रदराज लोगो को यह पता नहीं होता है कि उनके भी कुछ अधिकार है वे भी पारिवारिक और सामाजिक प्रताड़ना से बचने के लिए कानून का सहारा ले सकते है |  अपनी देखभाल के लिए बच्चों के द्धारा उचित व्यवहार न करने पर उन्हें दंड दिला सकते है | अपनी जमीन जायदाद और बचत से उन्हें बेदखल कर सकते है और अपनी भावनाओं के साथ खिलवाड़ करने से लेकर अपमानित किए जाने के प्रतिकार कर सकते है |
भविष्‍य की ओर कदम
2017 के बुजुर्ग दिवस की थीम भविष्‍य की ओर कदम बढ़ाना है। यह तभी संभव है कि जब बढ़ती उम्र को थोड़ा सा नजर-अंदाज करना सीख लिया जाए। अपने मत है कल क्‍या होगा का फालतू उर निकाल दिया जाए। इस के लिए नियमों के रूप में प्रचलित सामाजिक और पारवारिक बन्‍धनों को तोड़ना पड़े तब भी संकोच न करते हुए बस उनकी अवहेलना करना ही सीख लिया तो काफी होगा।
ऐसे उदाहरण कम नहीं है जिन्‍में 70 से 100 या उससे भी अधिक उम्र के पुरूष ही नहीं, महिलाओं ने भी कीर्तमान स्‍थापित किए है। उनमें अधिक पढ़ाई करना, विश्‍व भ्रमण करने वालों की एक लम्‍बी कतार है।
उम्र बढ़ने के साथ अनेक प्रकार की शारीरिक और मानसिक बीमारियों का सिलसिला शुरू हो जाता है इसमें गठिया, मोटापा, कमजोर हड्डियां, शिथिल मासपेशियां, कम सुनाई पढ़ना या दिखाई देना याद्दाशत कम होना, किसी बात को समझने, जल्‍दी खीझ जाना या अपने मन का न होना या उपेक्षित किए जाने पर कोधित हो जाना यह सब कोई ज्‍यादा मायने नहीं रखते है जब बुजुर्ग उन्‍हें जीवन की सामान्‍य प्रक्रिया या परिवर्तन की कड़ी सगझने में सफल हो जाता है।
युवा पीढ़ी के लिए इतना ही मान लेना काफी है कि अब उसके अधिकारों की बात हो तो यह ध्‍यान रखें कि उसका अस्तित्‍व बुजुर्ग पीढ़ी की बदोलत ही है। यह नवजवानों की जिम्‍मेदारी है कि वह अपने परिवार और समाज में अपने बुजुर्गों की गतिशील रखने के लिए उचित प्रबन्‍ध करे, क्‍योंकि इस उम्र में उपेक्षा का भाव आत्‍महत्‍या से लेकर हिंसात्‍मक व्‍यवहार तक की ओर ले जा सकता है।

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